‘छत्तीसगढ़ के कलंक आय लोककला बिगड़इया कलाकार’

अनाप शनाप एलबम के सीडी म रोक लगना चाही: प्रतिमा
पंडवानी गायिका प्रतिमा बारले संग विजय मिश्रा ‘अमित’ के गोठ बात
छत्तीसगढ़ म लोककथा अउ लोकगाथा के भरमार हांवय। घर परिवार के डोकरी-डोकरा अउ सियान मन लइका मन ल लोककथा ल सुनावत-सुनावत बने-बने गुन के बीजा ल नोनी बाबू मन के दिल दिमाक म बों देथें। फेर लोकगाथा ल लइका-सियान एके संग मिलजुल के रात-रात भर चौपाल म बइठ के सुनथें। लोकथा ल साधारण मनखे घलो सुना सकत हे फेर लोकगाथा ल सुनाय बर बिसेस कलाकारी के गुन होना चाही। काबर की लोकगाथा म गाना अउ कथा दुनु के मिझरा होथे। इही पाय के लोकगाथा सुनोइया कालाकार के भीतर गाय-बजाय के गुन होथे।
छत्तीसगढ़ म पड़वानी, भरथरी, ढोला मारू, चंदेनी, दसमतकइना, सरवन कुमार असन कतको लोकगाथा गाए जाथे। फेर सबले जादा परसिध्दी पंडवानी ल मिले हावय। पंडवानी के नाम आथे तहां ले सबो झन पदमश्री तीजन बाई अउ झाड़ूराम देवांगन ल सुरता करथे। इहीं पंडवानी गवइया मन के संगे संग श्रीमती प्रतिमा बारले हर घलोक पंडवानी के परचम ल फहराए के बीड़ा उठाए हावय।
जय सरस्वती पंडवानी पार्टी लोककला मंच कवर्धा के ये कलाकार हर कद-काठी म नानचुन हावय फेर ”छोटे मिरचा जादा झार” कस पंडवानी कला ल जोरदार प्रस्तुत करथे। प्रतिमा बारले हर लगातार चौदह घंटा तक पंडवानी गाए के रिकार्ड बनाए के ताल ठोकथे। ओकर संग मुहाचाही करे के मउका स्वदेशी मेला बिलासपुर म मिलीस ओला प्रस्तुत करथवं-
पंडवानी के बारे म पहिली थोर बहुत बताबे ओ प्रतिमा?
– पंडवानी लोकगाथा आय जेमा महाभारत के कथा ल सुनाए जाथे। पंडवानी गायक हर हाथ म तंबुरा या फेर करताल बजात-बजात कौरव-पांडव के चरितर ल बताथे। पंडवानी के दु परकार हावय वेदमती अउ कापालिक। वेदमती म पंडवानी गायक गायन के संग-संग नाच-नाच के भाव ल देखाथे, लेकिन कापालिक शैली म खाली गा-गा के कथा ल सुनाए जाथे। पंडवानी ल बारहों महिना सुनाए जाथे। एकर बर कोनो बिसेस तीन तिहार अउ मौसम के बंधना नइ होये।
पंडवानी के कोने सैली म तेंहर कथा लसुनाथस?
– पंडवानी के वेदमती सैली रह मोर पसंद आये। येमा गायक के संगे संग हुंकारू भरोइया कलाकार ”रागी” होथे। मोर रागी द्वारिका मांडले आय। एकर अलावा मोर पंडवानी गायकी ल मजेदार बनाये के काम अलग-अलग बाजा ल बजाके हरीप्रसाद पात्र (तबला), देव चंद्र बंजारे (बेंजो), रामसुख जोशी (नाल), बालक दास दिवाकर (झुमका) हर करथे।
पहिली जमाना के लइका अउ आज के लइका मन म अपन कला संस्कृति ल अपनाये के कतका ललक दिखथे?
– आज के लइका मन ल देखबे त बडा दुख लागथे। अपन तीज-तिहार, बोली भाखा अउ कला-संस्कृति ल नवा लइका मन नइ जानय। पहिली जमाना म नानहे पन ले गाना, बजाना, भजन, कीर्तिन ल लइका मन ह सिख जात रिहीना। अब तो उल्टा जमाना आगे हावय। नवा जमाना के बात ल एक झिन लिखोइया हर बने लिखे हांवय कि ”बाप पहिरथे धोती कुर्ता, लइका ल चाही पेंट रे, बाप लगावय चोवा चंदन, लइका ल चाही सेंट रे”। आज के नेवरिहा कलाकार मन घलो लाइन ले बेलाइन हो गे हांवय। अउ ऊपर ले अनाप-सनाप एलबम के सीडी निकाल के छानही म होरा भुंजथ हांवय। इही पाय के कई जगह कलाकार मन ल फूल के जगह म पथरा के मार सहिना पडथे।
छत्तीसगढ़ के लोककला ल बिगाड़ने वाला कलाकार मन ल का कहना चाहबे ओ प्रतिमा?
– ये सवाल ल बने पूछे हस भइया। हमर लोककला ल बिगाड़ने वाला कलाकार मन छत्तीसगढ़ जइसे सुंदर राज बर भरी कलंक आंये। फेर कहीथें न कि ”टिटही के पेले ले पहार ह नई पेलाय”। अइसनेहे हमर लोककला ल बिगाड़-बिगाड़ के देखाने वाला कलाकार मन अपन जिनगी म जादा सफल नइ हो सकय। जलदी नाम-दाम कमाए के चक्कर म जउन कलाकार परही तेहर ओतके जलदी नंदा घलो जाही। नवा कलाकार मन ल अपन पूरखौती के नाम अउ काम ल आघु बढ़ाना चाही।
ठ्ठ पंडवानी के रंग म बुड़े-बुड़े का सपना ल देखे हावस प्रतिमा, जेला अभी पुरा करना तोला बाकी हांवय?
– एके सपना हावय भइया कि जिनगी भर पंडवानी के रंग ल जन-जन तक बगरावत राहव। देस अउ बिदेस म पंडवानी के पताका ल फहरावत छत्तीसगढ़ के मान ल बढ़ावव। नवा राज बने के बाद संस्कृति विभाग हर जादा मउका कलाकार मन ल देवत हावय। ते पाय के मन म नवा आस-बिसवास जाग गीत हे।
अपढ़ अउ निरक्षर पंडवानी गायिका प्रतिमा संग गोठ बात ल खतम करे के बाद मोरो मन म एक ठिन बिचार ह घेरीबेरी आय लागीस कि पढ़े-लिखे होय के बाद हमर नेवरिहा कलाकार मन अपन छत्तीसगढ़ के रंग रूप ल बदरंग बनावत हांवय। एहर सब्बो गांव साहर के गुनोइया मन बर चिंता फिकीर के बात होना चाही। गांव चौपाल म छत्तीसगढ़ी लोकमंच के आड़ म जउन कलाकार मन हा ”नंगरा नांच” देखावत हे। ते मन ल जइसे अड़ीयल बइला ल तुतारी मा कोचक कोचक के लाइन म लाए जाथे। तइसनेहे मजा चखाना चाही।
विजय मिश्रा
जनसंपर्क अधिकारी
छत्तीसगढ़ विद्युत मंडल डंगनिया
रायपुर (छ.ग.)

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